Poetry- बस...! ज़िन्दगी अब थम सी जाना चाहती है

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बस...! ज़िन्दगी अब थम सी जाना चाहती है।

ये हवा, ये पानी, ये शहर, ये गांव
उनकी यादों का आना
उनकी यादों का जाना
फिर उनकी यादों का आ जाना,

बस...! अब ये ठहर जाना चाहती है।

वो उनका साया हर तरफ नज़र आना,
चांदनी आग तो सूरज शीतल बन जाना,
दर्रे-दर्रे में बस उनका ही नज़र आना।

बस...! उनके जेहन में सिमट जाना चाहते हैं।
ज़िन्दगी अब थम सी जाना चाहती है।

डर लगता है डूब जाने से, कट जाने से।
भय लगता है जल जाने से, लटक जाने से।
सोच के ऐसे तरीकों से........

बस...! अब मिट जाना चाहते हैं।
उन्ही की तरह पंचतत्व में विलय हो जाना चाहते हैं।

कोई आसान, खुशनुमा तरीका तो बता दे,
जिससे मैं मौत को दुल्हन की तरह गले लगा सकूँ।

बस...! अब रुक सा जाना चाहता हूं।
बस...! ज़िन्दगी अब थम सी जाना चाहती है।

ज़िन्दगी अब थम सी जाना चाहती है।



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Poetry- बस...! ज़िन्दगी अब थम सी जाना चाहती है



इस कविता का एक शानदार विडियो हमारे Youtube चैनल भी है , देखिये-








लेखक परिचय-

नाम- श्याम 
पता- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश (ग्वालियर)






Copyright- इस विडियो से सम्बंधित सभी तथ्य "A to Z Sangam" के पास सुरक्षित है.....|

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