दानव दहेज से रक्त चुसा,उस दानव को अपनाऊ क्यों।
जो मानवता से हीन हुआ, मैं उसको गले लगाऊ क्यों।
है मुझे राम का वन प्यारा,रावण की लंक कटीली है।
उस स्वर्ण लंक से घ्रृणा मुझे, वह पंचवटी अलबेली है।
बिक गया खेत, बेकार पिता, अब भोजन के भी लाले है।
भाभी भी गहना बेच चुकी, मम्मीजी, काल हवाले है।
तेरी खेती बेचवा कर के,लेकर दहेज जो आया है।
वह दूल्हा है, या दानव है, किसको तू शीश झुकाया है।
मैं शब्द-कोष मे ढूंढ़ रही, क्या दानव ही परमेश्वर है।
हँसता मेरा परिवार जला,वह ईश्वर किसका ईश्वर है।
दुर्योधन का मेवा तजकर, जो साग विदुर का खाता है।
शवरी की जूठी बेर चखा, वह परमेश्वर कहलाता है।
है धर्म ,और या धर्म गुरु, आ मुझको ज्ञान प्रदान करे।
मेरा घर जिसनें फूकाँ है, क्या हम उसका सम्मान करें।
इन धर्माचार्यों से पूछो,आ मुझको वे समझावे तो।
मेरा घर जिसनें फूकाँ है, वह मेरा कौन बतावें तो।
क्या वह मेरा, पति- परमेश्वर ,या रक्षक है या भँक्षक है?
क्या गले लगा लू मैं उसको? दुर्दान्त दस्यु या तक्षक है।
दुर्योधन का मेवा तजकर, जो साग विदुर घर खाता है,
शबरी की जूठी बेर चखा, वह परमेश्वर कहलाता है
रत्नेश कुमार राय....................
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लेखक परिचय-
रत्नेश राय
आजमगढ़
उत्तर प्रदेश